राजवंशी भाषिक कविता : “मायाँर झाँटा”

टँल्टल् .. टाँमाटुल
आँम्लीयात .. चर्हिल खाँटा ।
मायाँर हिसाब .. हाट-बाजारते,
जुलुमे खिलालो .. गे घाटा ।।

चाउमिन म: म: .. हाटेर सान्दुस,
आर्ह लिलो गे .. नुआ-पाटा।
झिट्काचित कोईखुना .. झर्का नजरे
ब्रेकअपेर .. दिछिस गे झाँटा।।

हल्दीते परिल तोर .. सँनार रङ्ग
सँनाते जरलो .. कर्कर नाता।
मायाँर संसार .. कहचे बहुरुपिया
सहबाए हबे त .. झिटी/ झाँटा।।

मायाँर धाँर चख्ँ .. आक्वारीर भरे
दुनियाँक देखाए गे .. सँक् मेटा।
मायाँत त हए .. एक रंगलीला
एकदिन देहा त .. हबे पँच्कटा।।

खय राखेक गे .. मायाँर हिसाबत,
सदाए पुर्णिमार चाँन .. नाजाए देखा।
जिन्दगी त लिए .. आईचे सभाए
यिला करम-कपाल .. किस्मतेर लेखा।।

जोगेन्द्र प्रसाद राजवंशी
कचनकवल :- ३, दल्की झापा
हाल :- मलेसिया

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