राजवंशी भाषिक कविता : “तीन बेट्रीयार लेट”
पार्टी त हए बोले , ३ बेट्रीयार लेट्
८ कामानी छाँतीरर , एकेडा हचे डेट्।
तीन पार्टी , तीन बेट्री , बाहिरा आवरण
संगठनते बल हचे , राजनीतिकेर कारण ।।
गाँरी परिए छे घरते , उठाई जिम्मेवारी
आगुवान बेगरे निहचे , काँह गाँरीत सबारी।
ठाँअत बठना पाले , सत्तारे रुझ्बे मन
माथाईर बले उठाबे , ना कि जागरण ।।
ओझोतत् दौगिए बेराचे , सत्तार शिकारी
८ कामानी मिल्ले, दिबेना सामाजक छियारी।
८ भाई पार्टीर सदस्य , मिलिए कर परिवहन
मटमटीया खोलडाक भिराए , करीना जतन।।
लोभते छट-बड् हए , काँह नाबनोक भिकारी,
सत्ता त बहुरुपीया हचे , काँह नाबनोक पैकारी।
भाषा साहित्यक उठाए , करोक चाँतर बँन्
छिर्याछित समाजक मिलाए , करोक एके गठन ।।
जोगेन्द्र प्रसाद राजवंशी
कचनकवल :-३, दल्की झापा
हाल :- मलेसिया
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